“कब होगा मां सबेरा”
“कब होगा मां सबेरा”
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कोख में है घर मेरा,
कब होगा, माँ सबेरा?
तुमसे ही सृष्टि चलती है,
जग में ऊँची है तेरी शान,
मुझसे क्या अपराध हुआ?
मुझको नहीं जरा भी ज्ञान।
तुम्हारे जैसा मैं भी हूँ,
मुझको भी पीड़ा होती है,
गौर करो अपना बचपन,
तुम भी किसी की बेटी हो।
तुम्हारे संग भी ऐसा होता,
तुम क्या करती गर्भ में?
तुम भी नहीं होती धरती पर,
किसके कोख में पलती मां?
यदि माँ ही भक्षक बन जाये,
बिटियाँ जन्म कहाँ से पाये?
हर कोई करे बेटे की चेष्टा,
धरा पर जीवन, दुर्लभ हो जाये।
दया की प्रतीक हो तुम,
ममता की अंचल है तेरा,
ऐसी कलंक ना लो माथे पर,
बेटियों का कहाँ होगा बसेरा।
कोख में है घर मेरा,
कब होगा माँ सबेरा?
✍वर्षा (एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया”अंक”