“कब से बैठा न जाने तेरे द्वार पर “
07/03/2023
“कब से बैठा न जाने तेरे द्वार पर ”
कब से बैठा न जाने तेरे द्वार पर।
आया तुझको मनाने तेरे द्वार पर।
वो मटकना तेरा और बहकना मेरा।
मीठी बातें सुना दिल चुराना तेरा।।
तुम हो चाहत मेरी , और क्या मैं कहूँ।
तुमको चाहूँगा हरदम कहीं भी रहूँ।
आया तुझको सजाने तेरे द्वार पर।….१
कब से बैठा न जाने तेरे द्वार पर।
सुन के आता नहीं वो मेरे हाल को।
कैसे भूलूँ मैं फूलों की उस डाल को।
घाव गहरा बहुत ये मेरे दिल पे है।
मेरा दिल ये धड़कता तेरे दिल से है।
आया मरहम लगाने तेरे द्वार पर।…२
कब से बैठा न जाने तेरे द्वार पर।
अब तो बुझने लगी लौ तेरे प्यार की।
याद कैसे बचाऊँ मेंरे यार की।
रूठा है क्यों बता यूँ क्यों नाराज है।
मेरे दिल पे तुम्हारा ही राज है।
आया तुझको बुलाने तेरे द्वार पर।….३
कब से बैठा न जाने तेरे द्वार पर।
बात क्या है बता ‘रुद्र’ सोया है क्यों।
बेवजह रात में आँख धोया है क्यों।
क्या कहीं खो गया चाँद आकाश में।
क्या कमी रह गई मेरे विश्वास में।
आया तुझको बताने तेरे द्वार पर।…..४
कब से बैठा न जाने तेरे द्वार पर।
द्वारा:🖋️🖋️
लक्ष्मीकान्त शर्मा ‘रुद्र’
स्व-रचित / मौलिक
देवली विराटनगर जयपुर राज०