कब लेगा यह युद्ध विराम।
जंग छिड़ी है किन लोगों में,
फूट पड़ी है किन लोगों में,
मन में द्वेष की लपटें लेती,
आग बड़ी है किन लोगों में,
जो भड़की या भड़काई है लेती नहीं कभी विश्राम।
कब लेगा यह युद्ध विराम।
युगों समर अग्नि में जलते,
अश्रु बनकर भाव पिघलते,
पर्वत चकनाचूर है होते,
जब भी मानव आग उगलते,
मानवता को छिन्न कर दिया छिन लिया उसका अभिराम।
कब लेगा यह युद्ध विराम।
कटे शीश को तौल रहे हैं,
फिर भी ऊँचा बोल रहे हैं,
बेबस लाचारों के घर में,
क्या है जिसे टटौल रहें हैं,
क्या होगा अपने अंदर संकुचाती जनता का परिणाम।
कब लेगा यह युद्ध विराम।