कब बिछड़कर हम दोनों हमसफ़र हो जाए
न जाने हम कुछ ऐसा कर जाए,
तेरे सीने से लिपटकर सो जाए!!
बेचैन है मेरी ये बाहें तुझे पाने को,
जी भर जिए, पल भर में मर जाए!!
ख़ामोशी से कटते हैं फुर्कत के ये दिन,
रात हो और तेरे सपनों में खो जाए!!
तेरे बदन से महक आती है गुलाबों की,
कूचे इश्क़ में अब बस कूच कर जाए!!
बिन तुम्हारे ये नींद कभी नहीं आती मुझे,
काश यूं तुम्हारे साथ बे-बिस्तर हो जाए!!
तड़प उठी है ये रुह, जब से तुम साथ नहीं,
सितम जारी है मरा दिल कब अमर हो जाए!!
गम है कि ये बे-दिली रास नहीं आती मुझे,
कब बिछड़कर हम दोनों हमसफ़र हो जाए!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”