कब तक ये जाति धर्म पे ठगते रहेंगे हम।
गज़ल
221….. 2121…… 1221…… 212
कब तक ये जाति धर्म पे ठगते रहेंगे हम।
कब तक के राजनीति में पिसते रहेंगे हम।
इन बंधनों से मुक्त हो बाहर भी आइए,
बर्ना इसी के जाल में फँसते रहेंगे हम।
जब तक चढ़ा रहेगा ये चश्मा जो आँख पर,
नाकाबिलों को शौक से चुनते रहेंगे हम।
ये इंतिहा है सोच लो आखिर ये कब तलक,
धोखा ये साथ देश के करते रहेंगे हम।
जो चाहे बोले खौफ से डरना नहीं हमें,
होकर निडर रहें न यूँ डरते रहेंगे हम।
प्रेमी हैं प्रेम से ही है अपना तो वास्ता,
करते हैं प्रेम देश से करते रहेंगे हम।
…….✍️ प्रेमी