“युद्ध है घाटे का सौदा”
1-
जब दो फूल खिलते,अच्छे ही दोनों लगते,
जब दो हाथ मिलते,शोभा दोनों बनते।
फिर क्यों लड़ते दोनों,तुम अकड़ते दोनों,
भारत पाक देखो रे,अमन में कब ढ़लते।
युद्ध है घाटे का सौदा,प्यार का उपजे पौधा,
मिलके रहनें में ही,दिन हैं बदलते।
दोनों ओर मरते जो,माँ के लाल होते हैं वो,
कब तक यूँ ही घर,देखेंगे उजड़ते।
2-
एक घर उजाला हो,अँधेरा एक घर में,
कब होगा रे सवेरा,दोनों के ही घर में।
कितने रिश्ते मिटते,कितनी आहें जलती,
नफ़रत की आग है,दोनों के ज़िगर में।
जीत का जश्न छोड़ो रे,हल स्थायी खोजो तुम,
मरने मारने की रे,न रहें फ़िकर में।
आँखें हैं फिर भी अँधे,कान रहते बहरे,
सब ख़ुदा के ही बंदे,फिर भी समर में।
3-
शासन वाले सुनलो,कोई उपचार करो,
सीमा पर युद्ध नहीं,शांति की नींव पड़ें।
घर के चिराग जले,रिश्ते रहें सभी बने,
देश का पैसा बचेगा,आगे होंगे रे खड़ें।
असंभव कुछ नहीं,कोशिशें करके देखो,
पेड़ प्यार का उपजे,तो गहरी हों जड़ें।
दिमाग़ सबको मिला,मगर थोड़ा है हिला,
ठीक हो आरोप नहीं,एक दूजे पे मड़ें।
?आर.एस.प्रीतम?