कब तक चुप रहूंगी
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फिल्म – कब तक चुप रहूंगी। स्क्रिप्ट – रौशन राय का
मोबाइल नंबर – 9515651283 / 7859042461
तारीक – 11 – 12 – 2021
की एक बार फिर सबके सब हक्का बक्का रह गया
राधा की सुरत उनके पहनावे कपड़े में चार चांद लगा रहा था वो छोटा मिनी फ्राॅक बाल खुले आंख पर चश्मा हाय हील सेण्डल राधा के सुरत पर लड़कियां मरने लगी तो लड़के का जो हाल हो सकता (ये हमारे प्यारे दर्शक समझ सकते हैं)
प्रिंसिपल – राधा बेटा तुम थोड़ा देरी कर दी
राधा – सोरी सर पापा को दवाई के बारे में समझाने में थोड़ा देर हो गई इसके लिए मैं आपसे माफी चाहती हूं
प्रिंसिपल – ओ के बेटा चलों समान को बस में रखबाओ
बस एकदम लगजड़ी के साथ फुल ए सी का जो बाजू में खड़ा था
ये सुनते ही ड्राइवर ने राधा का बैग बस के डिक्की में बस कन्डेक्टर के मदद से रख दिया
राधा अपने सहेलियों के बीच पहुंची तो ना जाने उनके सहेलियां क्या क्या कहके उसे छेड़ने लगी
इस पर राधा बोली जो होगा मेरे मन का राजा वो सबसे अलग और सबसे जुदा होगा मेरे प्यारी प्यारी सखियों समझ गई आप सब (राधा थोड़ा इठला कर बोली )
सहेलियां – उई मां
इतने में बस कन्डेक्टर ने एक सिटी मारी जो उस सिटी के माध्यम से सबको बस में बैठने के लिए कहा। और सभी छात्र छात्राओं अपना अपना जगह लिया और राधा का जगह कुछ स्पेशल था बस ए सी का था और ड्राइवर ने ए सी चालू कर दिया।
इस पिकनिक में राॅकी और राॅकी का कुछ आवारा साथी भी था लड़के का बस में लड़की नहीं और लड़की के बस में लड़का नहीं।
लड़के के साथ दो मास्टर जी और लड़की के साथ दो मास्टरनी जी बस में बैठ गई
प्रिंसिपल साहब ने दोनों बस का निरीक्षण किया और लड़के वाले बस में बैठ कर ड्राइवर को चलने की आज्ञा दिया
ड्राइवर बस स्टार्ट कर चल दिया । थोड़े ही देर में बस अपना रफ्तार दिखाते हुए यु पी के राम पुर की ओर बढ़ रहा था कोशी नदी के किनारे बसा इस राम पुर का अपना अलग इतिहास है कहते हैं की अंग्रेज़ो ने इस राम पुर को गुलाम नहीं बनाया था यहां का इतिहास कहता है की राम सिंह नाम के राजा के नाम पर ही इस जगह का नाम राम पुर पड़ा कोशी नदी का पानी अपने मस्ती में गीत गाते हुए बह रही थी हवा सन सन कर उसके साथ ताल मिला रहा था राम पुर तो हमें बहुत कुछ कहता है पर हम सुनने की कोशिश ही नहीं करते । छात्र छात्राओं से भरा बस कोठी नाम के पर्यटन स्थल पर जाकर रुका जहां पहले से ही सबके लिए एक बड़ा गेस्ट हाउस बुक करके रखा गया था सब बच्चों ने अपना अपना सामान बस डिक्की से निकाला और अपने सर के कहें अनुसार अपने अपने जगह पर अपना सामान रखा और झुम उठा वाह अब यहां पन्द्रह दिन रहना है । सारे बच्चे बहुत खुश था क्योंकि ऐसा जीवन जीने का फिर मौका कहा मिलेगा क्योंकि आज का दौर में सब इतने व्यस्त रहते हैं की किसी को कहीं घूमने फिरने का मौका नहीं मिलता। सभी गेस्ट हाउस को बहुत सुन्दर ढंग से सजाया और ध्यान रखा गया था ताकि किसीको भी किसी प्रकार का दिक्कत न हो। शहर के कसम कस बातावरन में जी रहे बच्चों को जैसे आजादी का पंख लग गया हो। राधा,रानी और रीता के लिए कुछ विशेष प्रकार का व्यवस्था किया गया था। शहर से रामपुर पहुंचते पहुंचते शाम के लगभग पांच बज चुका था । सबके पास कुछ न कुछ खाने के लिए था। और संयोग से यदि किसी के पास नहीं था तो आपस में सबने एर्जेष्ट किया । फिर भी प्रिंसिपल साहब ने कहा बच्चों अगर आज भर के लिए किसीको कुछ खाने के लिए मंगवाना हैं तो हमें लिस्ट बना कर दो हम मंगवा देते हैं कल से खाना बनाने के लिए हम रसोइया रख लेंगे तो आप सब को कोई दिक्कत नहीं होगी। सारे बच्चे में से जिसको मन हुआ वो मंगवाया और जिसको मन नहीं हुआ वो नहीं मंगवाया । पांच बजे तो सब राम पुर पहुंचे ही थे और बातों बात में आठ बज गया प्रिंसिपल साहब मास्टर मास्टरनी जी सारे गेस्ट हाउस का जायजा लिया और सब बच्चों को सो जाने को कहा । और ये हिदायत भी दी की कोई भी बिना हमारे प्रमिशन के कहीं नहीं जाएगा । न जाने क्यों इस गेस्ट हाउस में सभी बच्चे को एक अलग प्रकार का सुख का अनुभव हो रहा था और सबने खूब गहरी नींद में सो रहा था और पांच बजे सुबह का निंद और जबरदस्त होता है । ये सब जानते हैं जब सारे लोग गहरी नींद में सो रहे थे तब अचानक राधा का आंख खुल गया । आंख खुलते ही उनके कानों में एक बांसुरी की मन मोहक स्वर अमृत घोलने लगा राधा उस बांसुरी के धुन को बड़ी ध्यान से सुन रही थी । उस बांसुरी के धुन में जैसे राधा को ही बुलाने का स्वर आ रहा हो। राधा उठी और अपने गेस्ट हाउस से बाहर आई और बांसुरी के धुन का मुवायना करने लगी की ये धुन किधर से आ रहा है । तों उन्हें कुछ ही दुरी पर लगा । सुबह का समय, ओस की चादर में लपेटे हुए हसिन और हरा भरा वादियां चिड़िया की चहचहाहट सरसों के फुल और उसपे ये अमृत के समान बांसुरी की धुन राधा को पुरी तरह से रोमांचित कर रहा था राधा सोचने लगी की कितना फर्क है शहर और गांव में कितना सकुन है यहां पर जी करता है की सदा के लिए यही पर रह जाऊं तरह-तरह के सोच में डुबकी लगाते हुए राधा बांसुरी की धुन में मन मुग्ध हो गई थी । सुरज की लालीमा पुरब में जैसे बिखरने लगा । की अचानक बांसुरी की धुन शांत हो गया
तो राधा का ध्यान टुटा और वो वापस अपने गेस्ट हाउस में आ गई तब तक सुबह का छः बज चुका था वातावरण में हलचल होने लगा धीरे धीरे सब लोग अपने अपने कमरे से बाहर निकल कर मिठे धुप का स्वाद चखने लगा क्योंकि दिसंबर और जनवरी में काफी ठंड होता है इसलिए सबको सुरज का धुप बहुत प्यारा लग रहा था जैसे जैसे मौसम गरम होने लगा वैसे वैसे सब लोग मिलकर काम करने लगे दो मास्टर जी और दो चार छात्र प्रिंसिपल साहब के कहने पर नजदिक के गांव में गए और दो चार आदमियों से पुछा।
मास्टर साहब – एक आदमी कहता है भाई साहब इस गांव में यदि कोई खाना बनाता है तो हमें वो आदमी चाहिए पन्द्रह दिन के लिए
तो वो आदमी गांव के फेमस रसोइया का पता दिया मास्टर साहब उनको लेकर अपने निवास स्थान गेस्ट हाउस पर ले आएं इस तरह से सब अपने अपने काम पूरा करके शांत हुआ।
तब तक रसोइया खाना बना चुका था सब मिलकर खाया और थोड़ा देर आराम करने के बाद अब सबके मन में आया की ये वही शोले फिल्म की राम पुर है तो क्यों न इस राम पुर को घुमा जाय और घुमने का समय तय हुआ फिर प्रिंसिपल साहब से अनुमति लेने गया
राधा – सर हम लोग राम पुर घुमना चाहते हैं
प्रिंसिपल – ठीक है तुम्हारे साथ और कौन कौन है
राधा – सर हम तीन तो है ही अगर आप कहें तो मैं और लड़कियों को साथ कर लूंगी
प्रिंसिपल साहब – देखो राधा यह शहर अंजान हैं यहां कौन कैसा होगा ये कहना मुश्किल है इसलिए दस जन का टोली बनाकर और एक मैडम जी को साथ लेलों और जाओ पर छः बजते बजते वापस आ जाना नहीं तो हमें चिंता रहेगा
राधा – ओ के सर आपने जैसा कहा है वैसा ही होगा
प्रिंसिपल साहब – राधा हमें तुम पर भरोसा है जाओ तुम दस लड़कियां एक साथ।
राधा – थैंक्स सर बाय सर
राधा दस लड़कियां और एक मैडम के साथ में राम पुर घुमने निकलीं और आस पास के सभी जगहों पर घुमी और फिर समय पर वापस अपने गेस्ट हाउस में आ गई। रसोइया खाना बनाया और सब खाकर अपने अपने जगह पर सो गया । आज फिर राधा का निंद पांच बजे सुबह में बांसुरी के धुन पर खुल गया । आज भी राधा की कल वाला ही हाल था उस बांसुरी की तान जैसे राधा को अपने ओर खींच रहा था । राधा उठकर उस बांसुरी के धुन को सुनकर उस दिशा में जाने लगी जबकि सब लोग गहरी नींद में सो रहे हैं । आज थोड़ा ठंड भी ज्यादा है और कोहरा भी लगा हुआ है राधा अपने गेस्ट हाउस से निकली मात्र एक शाॅल ओढ़कर और नंगे पांव वो बांसुरी के धुन जहां से आ रहा था वो उस दिशा में अकेले चल दी थोड़े ही दुर चलने पर न आगे और न पिछे कुछ दिखाई दे रहा था क्योंकि कोहरा बहुत घना लगा हुआ था । राधा उस बांसुरी के धुन की ओर बढ़ रही थी और अंत में वहां पहुंच गई जहां से वो धुन आ रहा था । राधा ने देखा की एक खुबसूरत नौजवान इस कड़क ठंड में सिर्फ एक मामूली सा कपड़ा पहने एक वृक्ष के थोड़े ही उपर की टहनी पर बैठा अपने बांसुरी के धुन पर यहां के वातावरण में एक नशा भर रहा है लता से ओस की बूंदें टप टप टपक रहा है हरी भरी खेत ओस के चादर ओढ़े उस बांसुरी की धुन को पीएं जा रहा है । वृक्ष के नीचे खड़ी राधा उस बांसुरी वादक को देख कर अपने आप को भुल बैठी । कुछ देर बांसुरी की धुन को सुनी और जब रहा नहीं गया तो राधा उस बांसुरी वादक से पुछ बैठती है।
राधा – तुम कौन हो और इतनी सुबह को बांसुरी क्यों बजाते हो
राधा की आवाज जैसे बांसुरी वादक के कानों में शहद घोल दिया और उसने अपने होंठ से बांसुरी हटाया और आंख खोला तो सामने राधा को खड़ी पाया । वो राधा को देखा तो एक मिनट के लिए देखते ही रह गया।
राधा फिर वही शब्द दोहराई की तुम कौन हो और इतनी सुबह इतने ठंड में बीना गर्म कपड़े पहने ये बांसुरी क्यों बजाते हो क्या तुम्हें ठंड नहीं लगती
बांसुरी वादक फिर सोचने लगा की ये कोई भुत तो नहीं, फिर सोचा भुत इतनी सुन्दर तो नहीं होता, फिर सोचने लगा की हमारे बांसुरी की धुन को सुनने के लिए आकाश से परी आ गई हैं और वो वृक्ष के थोड़े उपर टहनी से सिधा छलांग लगा कर राधा के ठीक सामने आ खड़ा हो गया
एक पल के लिए राधा भी डर गई और उसी डर में वो फिर वही शब्द दोहराई । तुम कौन हो और इतनी सुबह को बांसुरी क्यों बजाते हो
बांसुरी वादक को अब समझ में आ गया था की ये न कोई भुत ना ही परी हैं यह परी से भी सुंदर एक लड़की है । तों बांसुरी वादक ने राधा के पुछे प्रश्न का जवाब देते हुए कहा
मेरा नाम कृष्णा हैं और मुझे बांसुरी बजाना बहुत अच्छा लगता हैं इस लिए मैं इतनी सुबह को बांसुरी बजाने यहां रोज आता हूं जिससे कोई हमें बांसुरी बजाते समय परेशान न करे और सुबह का समय तो अभ्यास का ही तो होता हैं।
पर आप कौन हैं और इतनी सुबह आप यहां क्या करने आई हैं । राधा कुछ बोल पाती उससे पहले कृष्णा फिर बोल पड़ा की शायद आप रास्ता भुल कर यहा पर आ गई हैं, है न
राधा ने कहा नही मैं रास्ता नहीं भुली हूं मैं तुम्हारे बांसुरी की धुन पर खींची आई हूं तुम बांसुरी से हमें क्यों बुलाते हों
कृष्णा – क्या आप हमारे बांसुरी के धुन को सुनकर यहां आई हैं वो भी इतने ठंड में और बांसुरी की धुन में मैं आपको बुलाता हूं पर मैं न आपको जानता हूं और न आपके नाम को तों भला मैं आपको कैसे बुलाऊंगा अच्छा बताओ आपका नाम क्या है
राधा – मेरा नाम राधा
कृष्णा – आपका नाम राधा हैं और मेरा कृष्णा ये कैसे संयोग है देखो मैं कृष्णा और आप राधा जबकि भगवान श्री कृष्ण की प्रेमिका राधा थी जो प्रेम को सदा के लिए अमृत पिला कर अमर कर दी ये सच है न किन्तु आपका और मेरा तों कोई प्रेम नहीं है और शायद हमारे बीच ऐसा होगा भी नहीं
कृष्णा के इस बात पर राधा चुप रही
फिर कृष्णा पुछा की आपका घर कहां है
तों राधा ने कहा दुर शहर में
कृष्णा – दुर शहर में तो आप यहां कैसे आई
राधा – मैं यहां पिकनिक मनाने के लिए आई हूं हमारे साथ और बहुत से लोग हैं
कृष्णा – आप पिकनिक मनाने आई हैं आपके साथ और बहुत से लोग हैं पर आप रुकी कहा है।
राधा – यहां से थोड़े ही दुरी पर कोठी हैं और उसी कोठी के गेस्ट हाउस में।
कृष्णा – अच्छा कल पांच बजे जो दो चमचमाती बसें आई आप उसी से आई हैं और उसी गेस्ट हाउस में आप रहती हों
राधा – हां मैं उसी गेस्ट हाउस में रहती हूं
कृष्णा – आप जानती हैं मैं भी उस गेस्ट हाउस को सजाने के समय उस में काम किया है हमें एक कमरे को सबसे स्पेशल रुप में सजाने के लिए कहा गया था हमने जो कमरे सजाया उसमें मैं अपना नाम लिख दिया है
राधा – बाएं तरफ एक कोने में दिवार पर कृष्णा लिखा है उसी में मैं रहती हूं
कृष्णा – अरे बाह मैं तो उसी को सजाया था
तब तक सुबह के छः बज गया सब लोग धीरे धीरे अपना बिस्तर छोड़ने लगा
राधा बोली ठीक है मैं जा रही हूं तो कृष्णा बोला अब तो मैं भी चलूंगा काम करने के लिए