— कब तक करूँ परवाह —
जब भी मन होता है
कुछ नया सा करते हैं
अपने मन को खुश करने को
नए से रंग भरते हैं !!
तमाम यतन करूँ
जी भर के प्रयत्न करूँ
फिर भी न जाने
जामने को हम चुभते हैं !!
कब तक करूँ
परवाह मैं उन सब की
जिनकी जुबान से ताने
भर भर के निकलते हैं !!
हम तो जैसे थे, वैसे ही हैं
खुश रहने के यत्न करते हैं
क्यूं उलझूं दुनिया की बातों में
क्या दुनिया की जेब के पैसे निकलते हैं ??
अजीत कुमार तलवार
मेरठ