कब आएगी सुखद बहार
तरस गए देखें धूप,
कैसे दिन ये आये ।
काम की व्यस्तता,
अब न मुझको भाए ।।
कुंठित हुआ यह मन,
अवरूद्ध हुए विचार ।
हर पल यही सोचता,
कब आए सुखद बहार ।।
आने को बसन्त है,
हृदय मेरा भयभीत ।
किसको सुनाऊँ पीड़ा,
सब सुनते मधुर गीत ।।
मैं बेबस देख रहा हूँ,
गुजरता समय अनमोल ।
वंचित हूँ सुहावनी शाम का,
पराए हुए मेरे मधुर बोल ।।