कबूतर इस जमाने में कहां अब पाले जाते हैं
कबूतर इस जमाने में कहां अब पाले जाते हैं
नई नस्लों के बच्चे हैं यह मोबाइल चलाते हैं
कभी मस्जिद शिवालों का जिन्होंने मुंह नहीं देखा
वह सोशल मीडिया पर मज़हबी झंडे उठाते हैं
किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचा नहीं पाए
ज़माने को बदलने का मगर बीड़ा उठाते हैं
कभी इंसानियत की जो हिफाज़त कर नहीं पाए
हमेशा फेसबुक पर वो सुदर्शन तक चलाते हैं
वतन के अम्न की अरशद सदा परवाह रहती है
वहीं कुछ लोग हमको मज़हबी घुटटी पिलाते हैं