कबीर के राम
रोम-रोम में जो रमता
वही राम है कबीरों का
ज़र्रे-ज़र्रे में जो बसता
वही राम है फकीरों का…
(१)
किसी मंदिर या मस्जिद का
मोहताज नहीं है वह
चप्पे-चप्पे में जो रहता
वही राम है फकीरों का
रोम-रोम में जो रमता
वही राम है कबीरों का…
(२)
सबकी रक्षा वह करता
उसकी रक्षा कौन करेगा
घट-घट में जो दिखता
वही राम है फकीरों का
रोम-रोम में जो रमता
वही राम है कबीरों का…
(३)
चाहे कोई दरिया हो वह
मिलेगा आख़िर सागर में
कतरे-कतरे में जो बहता
वही राम है फकीरों का
रोम-रोम में जो रमता
वही राम है कबीरों का…
(४)
ज़ात, धरम और नस्ल की
सरहद में उसको मत बांटो
जन-जन में जो जीता
वही राम है फकीरों का
रोम-रोम में जो रमता
वही राम है कबीरों का…
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Shekhar Chandra Mitra
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