कबीर: एक नाकाम पैगम्बर
हवाओं पर दर्ज़ करने
मुहब्बत का पैग़ाम
उतरा था वह ज़मीन पर
छोड़ कर आसमान।
(१)
हिंदी-उर्दू से उसका
कोई वास्ता नहीं था
वह बोलता था दिल की
धड़कनों की ज़ुबान।
(२)
फिरकापरस्तों से उसकी
निभती भी तो कैसे
उसके लिए जो हिंदू थे
वही थे मुसलमान।
(३)
उसकी बातों पर अगर
हमने किया होता ग़ौर
तो बना होता एक
दूसरा ही हिंदुस्तान।
(४)
उसके व्यंग्य-बाणों से
रह गए तिलमिला कर
पाखंडी धर्मगुरु और
घमंडी सियासतदान…
(५)
वह तो बीमार रूहों का
हो सकता था मसीहा
लेकिन बनकर रह गया
एक पैगम्बर नाकाम।
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
Seorahi, Kushi Nagar, U.P
पोस्ट-274406