कबीर: एक नाकाम पैगंबर
हवाओं पर दर्ज़ करने
मुहब्बत का पैग़ाम
उतरा था वह ज़मीन पर
छोड़ कर आसमान…
(१)
हिंदी-उर्दू से उसका
कोई वास्ता न था
वह बोलता था दिल की
धड़कनों की ज़ुबान…
(२)
फिरकापरस्तों से उसकी
निभती भी तो कैसे
उसके लिए जो हिंदू थे
वही थे मुसलमान…
(३)
उसकी बातों पर अगर
हमने किया होता ग़ौर
तो बना होता एक
दूसरा ही हिंदुस्तान…
(४)
वह तो बीमार रूहों का
हो सकता था मसीहा
लेकिन बनकर रह गया
एक पैगंबर नाकाम…
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Shekhar Chandra Mitra
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