कबीर:एक बेरहम मसीहा
उसमें कहीं सुई की चुभन है
तो कहीं चोट हथौड़े की!
कबीर की कविता तो है मार
नंगी पीठ पर कोड़े की!!
इससे पहले कि वह बनकर
रह जाए एक नासूर!
कबीर चलाते हैं नश्तर ताकि
दवा हो सके फोड़े की!!
Shekhar Chandra Mitra
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