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23 Jul 2018 · 2 min read

कफन के साये में

शीर्षक – कफन के साये में
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शहर के बीचो बीच काली चमचमाती बलखाती सड़क पर, जहाँ एक ओर ऊंची ऊंची इमारतें अपने बड़प्पन का परिचय दे रही है ओर दूसरी ओर गरीबों भिखारियों ओर समाज के सताए लोगो का ठिकाना फुटपाथ है।
उसी फुटपाथ पर आज हाहाकार मचा हुआ है वहाँ किसी अपाहिज हरिया की मौत हो गई है l किसी को कोई लेना देना नहीं है, बस कुछ तमाशवीन उसकी लाश के चारो ओर अनर्गल बाते करते हुए शोक व्यक्त कर रहे हैं जिनमें मैं भी एक था
तभी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने शंका जाहिर की कि उस अभागे का अंतिम संस्कार कौन करेगा ?

भीड़ में सुगबुगाहट होने लगी.. कि उसके परिबार में कौन है, कोई है भी या नहीं,…. ओर पता नहीं क्या क्या l
तभी पता चला कि वह बिल्कुल अकेला था… यह जानकर लोगो के ह्रदय से दया फूटने लगी ओर एक चादर बिछाकर, उसके कफन के इंतजाम होने लगा .. देखते देखते उस चादर पर सिक्के व रुपये बरसने लगे।
कुछ ही देर में अंतिम संस्कार का सामान लाया गया, और शव को कफन में लपेटकर उसे विदा करने की ते‍यारी होने लगी … कुछ समाजसेवी भी आ गए थे लेकिन मुझे उन सब से अलग उनके दिखावे से अलग हटकर हरिया की आंखो में देखने में आकर्षण हो रहा था,,,, मानो उसकी आँखे कह रही हो… बाबूजी, मैं जिंदगी भर सरकार, समाज के लिए उपेक्षित रहा, यदि इन लोगो ने, आपके समाज ने थोड़ी सी दया दिखायी होती तो मैं भी इस भीड़ में शामिल होताl यही सिक्के यदि मेरे खाली कटोरे में पड़े होते तो शायद मैं भी इस भीड़ में शामिल होता l
यदि यही दया उस गाड़ी वाले ने दिखाई होती जिसने मेरी दोनों टांगे कुचल दी तो मैं भी अपने पैरों पर खड़ा होकर अपने कर्मो से समाज के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ा होता… शायद मैं उपेक्षित न होताl
इसकी दर्द भरी जिंदगी से जुड़ भी न पाया था कि – राम नाम सत्य है- के जोरदार नारे ने मुझे झकझोर के रख दियाl
चार कंधो पर हरिया अंतिम यात्रा पर जा रहा था उसके चहरे पर मुझे अजब सी मुस्कान दिख रही थी मानो कहना चाहता था कि कितना सुकून मिलता हे कफन के साये में ….. कोई कमी नहीं रही रुपए पैसे की , कोई चिंता नहीं भूख-प्यास की इस कफन के साये में

राघव दुबे
इटावा (उ0प्र0)
8439401034

Language: Hindi
378 Views
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