कपड़ा तेरी अजब कहानी
रात का अंधेरा
लाज बचाती वह
दुर्योधन के
चीर हरण से
उम्मीद नहीं
आएगा किसन
कोई आज
कपड़ा आज
लगता मोहताज
शरीर का
कपड़ा गायब
होता जाता
लज्जा अपने में
सिमटती जाती
रहेगी मर्यादा में
जब बहन बेटियां
कपड़े इज्जत
बचाएंगे उनकी
और आखिर में
कपड़ा तेरी
अजब कहानी
जिंदगी भर पहने जो
इन्सान कपड़े रंगीले
सफेद कफन ही
साथी आखिर उसका
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल