कपकपाते हैं हाथ मेरे..
कपकपाते हैं हाथ मेरे,
जब लिखता हूँ तुम्हारे बारे में
याद आते हैं वो जख़्म गहरे,
जब लिखता हूँ तुम्हारे बारे में
सूखने लगती हैं मेरी कलम की स्याही,
जब लिखता हूँ तुम्हारे बारे में
पूछने लगती हैं तुम्हारी माई,
जब लिखता हूँ तुम्हारे बारे में
तुम्हारी पत्नी रूठने लगती हैं,
जब लिखता हूँ तुम्हारे बारे में
किसी की मंगनी टूटने लगती हैं,
जब लिखता हूँ तुम्हारे बारे में
मैं शर्मिंदा होने लगता हूँ,
जब लिखता हूँ तुम्हारे बारे में
कुछ मासूमों पर रोने लगता हूँ,
जब लिखता हूँ तुम्हारे बारे में…
(वीर शहीदों को समर्पित)
– © नीरज चौहान