कन्हैया
कन्हैया ….
क्या तुम फिर आना चाहोगे
इन धुर्त , मक्कार और चालबाज़ों के बीच
जो तुम्हारे नाम का धंधा करते हैं
खुद ब्रांडेड कपड़े पहन धर्म को नंगा करते हैं ,
तुम्हारी नीति अधर्म के विरूद्ध थी
यहाँ तो नीति ही अधर्म की है ,
तुम्हारी लड़ाई बुराई से थी
यहाँ लड़ाई ही बुराई के साथ की है ,
तुम्हारी चालें अपनों को न्याय दिलाने की थी
यहाँ चालें अपनों को न्याय से हटाने की हैं ,
तुम्हारा ही रचा – गढ़ा कलियुग है ये
इतना क्यों घबड़ा रहे हो
अपना दसवाँ अवतार लेने में
अब खुद ही कतरा रहे हो !!!
सवरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा, 24 – 8 – 2016 )