#कन्हैयागाड़ी
🚩 #कन्हैयागाड़ी 🚩
ईस्वी सम्वत १८९४ में एडिथ ब्राऊन ने ईसाई मतानुयायी महिलाओं के लिए “क्रिश्चियन नर्सिंग कॉलेज” खोला। कुछ समय के उपरांत ही इसे सबके लिए सुलभ कर दिया गया।
कुछ और समय बीता। अब संस्थान के साथ मेडिकल कॉलेज भी जुड़ गया। पंजाब प्रांत के लुधियाना नगर में जिस मार्ग के किनारे यह संस्थान स्थापित हुआ उसे नाम दिया गया “ब्राऊन रोड”। यह उचित भी था। भरतवंशी कृतघ्न नहीं हैं।
समय बीता। कॉलेज के साथ अस्पताल भी बना। अब पूरे संस्थान का नाम हुआ “क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज व मिस ब्राऊन मैमोरियल अस्पताल”। आज उत्तर भारत के प्रमुख अस्पतालों में इसकी गिनती होती है।
परंतु, हमारे पास तो पहले से ही आयुर्वेद नामक संजीवनी थी। वही आयुर्वेद जिसे अपनाने को आज पूरा विश्व लालायित है। जिसका मात्र एक ही घोषित उद्देश्य है “मानवमात्र की सेवा”। हमने उस ईश्वरप्रदत्त उपहार के मानसम्मान की बलि देकर ही इस (कु)सेवा को पाया।
लेकिन, ईसाई मतानुयायी संभवतया उधार में विश्वास नहीं करते। इस सेवा के बदले मेवा के रूप में कितने हिंदियों का मतांतरण किया गया इसके निश्चित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। परंतु, यदि होते तो मानवता को अवश्य ही लज्जित करते।
विचारणीय प्रश्न यह भी है कि सात समंदर पार से क्या वे लोग यहाँ सेवा करने ही आए थे?
तर्कवितर्क कुतर्क ही नहीं तथ्यों पर भी विचार करें।
और एक तथ्य यह भी है कि कैथोलिकों और प्रोटैस्टैंटों ने इकदूजे की जैसी क्रूर सेवा की वैसे उदाहरण मानवइतिहास में विरले ही हैं।
और यह भी एक तथ्य है कि भारत के एक प्रदेश गोवा की जिस विधि मतांतरित करके सेवा की गई उसका विवरण पढ़ने-सुनने के बाद “कश्मीर फाईल्ज़” नामक फिल्म छोटीसी कहानी लगेगी।
एक तथ्य यह भी है कि राजा टोडरमल जी द्वारा गुरुपुत्रों के अंतिम संस्कार के लिए ली गई विश्व की सर्वाधिक मूल्यवान धरती की सेवा और उस सेवा के बदले गुरु से नि:संंतान होने का वर मांगना कि कल कोई यह न कहे कि हमारे पूर्वज ने गुरु पर ऐसा उपकार किया था।
एक तथ्य और, युद्धभुमि में गुरु गोबिंदसिंह जी के विरुद्ध केवल मुसलमान नवाब बादशाह ही नहीं अनेक देशधर्मद्रोही हिंदु राजा भी हुआ करते थे।
एक तथ्य यह भी है कि श्री गुरु गोबिंदसिंह जी का संघर्ष किसी मतविशेष के विरुद्ध न होकर अन्याय व अधर्म के विरुद्ध था। तभी तो जब अचानक दिलावरखान ने उन्हें माछीवाड़ा में घेर लिया तब स्थानीय मुसलमानों नबी खान और गनी खान ने उन्हें अपना उच्च का पीर बताते हुए डोली में बैठाकर शत्रुओं के घेरे से सकुशल बाहर निकाल दिया।
निष्काम सेवा के सत्य व तथ्य की एक साक्षी और। युद्ध के बीच सूर्यास्त के समय जब दोनों पक्ष थम जाते। तब सिर पर कसकर लपेटी हुई अनघढ़-सी पगड़ी तन पर ढीलाढाला कुर्ता व घुटनों तक पहुंचकर रुकता हुआ कछहरा पहने गुरुभक्त कन्हैया कंधे पर मश्क लादकर युद्धक्षेत्र में गिरे-पड़े घायलों को पानी पिलाने निकल पड़ते।
एक दिन जब वे सेवाकार्य से वापस लौटे तो दशमेश पिता का बुलावा मिला। कन्हैया हाथ जोड़कर गुरुचरणों में उपस्थित हुए।
गुरु गोबिंदसिंह जी महाराज ने पूछा, “क्या यह सच है कन्हैया कि तुम शत्रुसैनिकों को भी पानी पिलाया करते हो?”
कन्हैया घुटनों के बल बैठ दोनों हाथ जोड़ मस्तक से लगा कमर को झुकाते हुए बोले, “हे गुरु, मुझे तो सभी प्यासों में आपके ही दर्शन होते हैं।”
सरबंसदानी दशमेश पिता दोनों बांहें फैलाए उठे और कन्हैया को छाती से लगाते हुए बोले, “जिसने मेरी सीख को हृदय में धारण किया वही मेरा सच्चा सिक्ख है।”
लेकिन, ठहरा हुआ पानी जिस प्रकार दूषित हो जाता है। संभवतया कुछ ऐसा ही घटित हुआ। पहले पंजाब के गांवों में विभिन्न संप्रदायों के गुरुद्वारे अलग-अलग हुए और फिर श्मशान भी बंट गए। विपरीतकाल का आघात जैसे इतना ही पर्याप्त नहीं था, अब गांवों में कब्रिस्तान भी बनने लगे हैं।
किंतु, इतने पर भी समय निराश होने का नहीं है। निराश होना हमारे पूर्वजों-गुरुओं ने हमें सिखाया ही नहीं। धरती पर गिरे बेरों का अभी कुछ बिगड़ा भी नहीं है। आइए, अपने पूर्वजों-गुरुओं के सम्मान का पुनर्स्थापन करें। और आरंभ यहां से करें कि रोगी को लाने-लेजाने वाले वाहन पर “कन्हैयागाड़ी” लिखवाएं।
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२