कन्या
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(लावणी छंद)
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पढ़ा लिखा कर मुझको भी माँ, खड़ी पैर पर कर देना ।
होकर बड़ी करूंगी सेवा, अच्छा सा चुन वर देना ।।
तू भी नारी मैं भी नारी, नारी होना पाप नहीं ।
सूना जग नारी बिन सारा, नारी हूँ अभिशाप नहीं ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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