कन्या दान
पढ़ा लिखा कर बड़ा किया है ,मैं इस पर अभिमान करूँ ।
नहीँ मानता हूँ कोई अंतर , इसीलिये सम्मान करूँ ॥
वस्तु नहीँ है मेरी बेटी, क्यों इसका अपमान करूँ ।
मेरे घर की है यह लक्ष्मी फ़िर क्यों कन्या दान करूँ ॥
जनम लिया बेटी ने जिस दिन ,पत्र नौकरी आया उस दिन ।
कैसे कहूँ पराया धन है ,क्यों यह बात स्वीकार करूँ ॥
दूसरी बेटी घर जब आई ,दुनिया भर की खुशियाँ लाई ।
क्यों मैं कहूँ पराया धन ये ,क्यों मैं इनका दान करूँ ॥
नियम बनाया है समाज ने, बेटी के बारे में जो यह ।
क्यों मैं इसको सच्चा मानू क्यों इसको स्वीकार करूँ ॥
जो घर माने बहू को लक्ष्मी, उसका इन्तेज़ार करूँ ।
जो बेटी है गरूर मेरा , कभी न उसका दान करूँ ॥
विजय बिज़नोरी