कन्यादान क्यों और किसलिए [भाग१]
पापा क्यों करते हो कन्यादान ,
मैं कोई दान की वस्तु नहीं।
फिर क्यों किया मेरा दान !
पापा क्यों करते हो कन्यादान!
जन्म हुआ था जब मेरा ,
आप फूले न समाएँ थे ।
घर में लक्ष्मी आई है,
ऐसा कहकर मिलवाएँ थे।
जिगर का टुकड़ा जान हैं मेरी ,
प्राणों से भी प्राण हैं मेरी,
इसके बिना मैं रह न सकूगाँ ,
यह सबको बतलाएँ थे।
मेरी एक खुशी के लिए पापा,
आपने हर दुख उठाएँ थे।
मेरी आँखो में आँसु आने पर,
आप बहुत घबराएँ थे।
जब भी लड़खड़ाये थे मेरे कदम ,
आप अपना हाथ बढ़ाएँ थे।
गिड़ने नही दूंगा मैं बेटी ,
यह विश्वास दिलाएँ थे।
तुम जहाँ – जहाँ रहोगे ,
साया बनकर मैं साथ रहूँगा।
तुम पर मैं बेटी कभी भी
दुख का आँच न आने दूंगा।
तेरे सारे कष्ट मैं,
अपने ऊपर ले लूंगा।
पर तेरी आँखों में बेटी
आँसू कभी न आने दूंगा।
आपके इस प्यार पर पापा
मैं मारी – मारी फिरती थी ।
अपने को मैं पापा ,
किस्मत वाली बेटी समझती थी।
आपने अपने कंधों पर बैठाकर,
दुनियाँ से मुझे मिलवाया था।
उसी कंधे पर बैठकर पापा,
मैंने भी खुब इतराया था।
आज उसी कंधे पर बैठाकर
क्यों कर दिया मुझे पराया!
आज उसी कंधे पर बैठ कर
मेरा दिल है भर-भर आया।
~ अनामिका