कन्यादान और विदाई
भावुक और मधुर पल है, कन्यादान और विदाई के
जिसने बिटिया जाई है, उस बेटी की माई के
नाजो से जिसने पाला, पिता और उस भाई के
जब बेटी की विदा द्वार तक, परिजन करने आते हैं
रोकना पाते आंख में आंसू, भाव विभोर हो जाते हैं
बेटी लिपट जाती है मां से, नेत्र पिता के भर आते हैं
शब्द नहीं आते होठों तक, बोल नहीं पाते हैं
दादा दादी नाना नानी परिजन पुरजन सखी सहेली
सभी शिसक रह जाते हैं
इस प्यार भरे करुणा के क्षण में, अश्रु बिंदु गिर जाते हैं
सूना सूना घर लगता है सूना घर का आंगन
इस बेटी बिदाई के क्षण की, महिमा बड़ी ही न्यारी है
युगों युगों से होती आई, यह नवसृजन की तैयारी है
बेटी आज से हुई पराई, यह घर द्वार भी हुआ पराया
खुश होकर अपने घर जाओ, सबने था समझाया
सास ससुर मां-बाप तुम्हारे, नंद तुम्हारी बहना
देवर होंगे भाई तुम्हारे, बेटी सदा सुखी तुम रहना
जाती हुई बेटी से देहरी, सब पुजबाते हैं
धन धान्य से घर भरा रहे, भाभी की गोद में आशीर्वाद डलवाते हैं
नयन नीर भर आए, जब रचना लिखी विदाई
दो बेटियों की विदाई की, याद मुझे भी आई