कनक थाल बैठे दो दीपक
कनक थाल बैठे दो दीपक
कहें हिया का हाल
धरती अंबर कान लगाए
समय बदलता चाल।
दूध भात ले राह देखती
आज कोसला माइ
कागा बैठा कनक भवन में
जूठन आस लगाइ।
दिन लौटेंगे सखा हमारे
थपकी देते गाल।
कनक थाल बैठे दो दीपक
कहें हिया का हाल।
धरती अम्बर कान लगाए
समय बदलता चाल।
घर आए फिर रामलला
पूरा कर वनवास ।
दो बार दिवाली आएगी
हम भी होंगे पास
और प्रकाशित राह वीथिका
अनुपम होगा साल ।
कनक थाल बैठे दो दीपक
कहे हिया का हाल
धरती अंबर कान लगाए
समय बदलता चाल।
अवध धाम गूँजे किलकारी
नाथ अयोध्या आय
तीनों माता हंसे अटारी
दशरथ फिर जी जाएं।
रामलला मन हृदय विराजे
अवधपुरी हो निहाल।
कनक थाल बैठे दो दीपक
कहें हिया का हाल
धरती अंबर कान लगाए
समय बदलता चाल।
` माधुरी महाकाश