कदम मिलाकर चलना होगा
हमारे प्यारे भारत देश की
अब तकदीर बदलना होगा
संकटमोचक विघ्नहर्ता बन
कदम मिलाकर चलना होगा।
क्योंकर ये विषाक्त हवाएँ
आज हुई चहुँ दिश विस्तीर्ण
देश की संस्कृति और सभ्यता
क्यों हो रही है यूँ जीर्ण शीर्ण
जो डाले कुदृष्टि भारत पर
उस दृष्टि को कुचलना होगा
संकटमोचक विघ्नहर्ता बन
कदम मिलाकर चलना होगा।
युगों-युगों से चली आ रही
अनेकता में एकता हमारी
धर्म जाति भाषा न विवाद
सदा रही आपस में यारी
बिगड़ी ज़हरीली हवा को
सुरम्य पवन में बदलना होगा
संकटमोचक विघ्नहर्ता बन
कदम मिलाकर चलना होगा।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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