कदम और कदम घोलकर विष बातों में पिलाते रहे
कदम और कदम घोलकर विष
बातों में पिलाते रहे,
हम भी विष पीते रहे,और उक़ूबत में भी सदा मुस्कुराते रहे।
सब यूँ ही आज़माते रहे,रिसती नौका को हम भी आहिस्ता आहिस्ता बढ़ाते रहे।
अकसर गम्मान आते रहे, ज़हीर बनकर शत्रुता निभाते रहे।
कदम और कदम इम्तिहां होता रहा, कदम और कदम खुद को स्वांरते रहे।
तोहफ़ा समझकर, हम भी मुस्कुराते रहे।
आरोप लगाते रहे,हम भी नूर बनकर जगमागते रहे।
कारवाँ ऐसे ही चलता रहा
हमे भी तजुर्बा मिलता रहा
सदा नुसर्त का सिलसिला चलता रहा
भूपेंद्र रावत
4।01।2017
गम्मान=भेदिया, चुगलबाज़
ज़हीर=मित्र,साथी
नुसर्त=विजय