कदमों से मुहब्बत को कभी नापा नहीं जाता
कदमों से मुहब्बत को कभी नापा नहीं जाता
ये वो रोग है जिसका दाग कभी नहीं जाता
उनकी मर्जी वो दो चार कदम हाथ पकड़ के चले
निभाने का हुनर हो तो सफ़र खाली नहीं जाता
लब ए बाम पे जाना मुहब्बत मुश्क लाती है
इस इक खुशी के आगे कुछ और नहीं भाता
खुश्क सा धूंआ उठता हो गर क्लब ए दीवार से फिर भी
पुर्दिल दिल की तनहाई में नाम ए यार फूंका नहीं जाता
~ सिद्धार्थ