कदमों की धूल…
जाने कैसा सुरूर, उसके दिल पर छा गया है
कौन है जो दीवाने को, फिर दीवाना बना गया है…
मौसम की तरहाँ जिसके, दिलबर बदला करते हैं
सुना है फिर कोई और, उसके दिल में आ गया है…
खुदा करे वो, यूँ ही ख़ुशफ़हमियों में जिए ताउम्र
वो सच जो ना सुनें, जो मेरी रूह तक जला गया है…
खुद को कुछ भी ना समझा, अंजाम ये हुआ
कदमों की धूल जानकर, आज वो उड़ा गया है…
हम दीवानों की तरहाँ, चाहते रहे जिंदगीभर
सभी यूँ ही चाहेंगे, इस वहम में वो बौरा गया है…
-✍️ देवश्री पारीक ‘अर्पिता’