कदंब की डारि
जनम जनम मैं मिलूँ रे मितवा
चाहे रहो परदेश,
चरण कमल रज गहूं रे मितवा
चाहे रहो परदेश।
काहे श्याम भये बैरागी
उद्धव ज्ञान सुजान रे!
यमुना तीर करम बड़ भागी
पद पखार्यो सुरेश रे।
जनम जनम मैं मिलूँ रे मितवा
चाहे रहो परदेश,
चरण कमल रज गहूं रे मितवा
चाहे रहो परदेश।
विकल हृदय बंजर मन आकुल
बृंदावन निर्मोही,
बिलखत नैन अधर नित तरसत
सूनी कदंब की डारि।
जनम जनम मैं मिलूँ रे मितवा
चाहे रहो परदेश,
चरण कमल रज गहूं रे मितवा
चाहे रहो परदेश।
रोज निहारूं पथ कोमल पंकज
उद्धव ज्ञान बखानी,
मन उसर धूमिल छवि नैननी
बृंदावन अकुलानी।
जनम जनम मैं मिलूँ रे मितवा
चाहे रहो परदेश,
चरण कमल रज गहूं रे मितवा
चाहे रहो परदेश।
©अनिल कुमार श्रीवास्तव