कथावाचक मालामाल
** कथावाचक-मालामाल **
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कथावाचक होते मालामाल है,
सुनने वालों के खस्ताहाल हैं।
यह अन्तर कहाँ आ जाता है,
घनी आस्था पे बड़ा सवाल है।
एक ही मिट्टी के हम हैं पुतले,
मन मन्दिर में यही मलाल है।
मोह माया है भक्ति पर भारी,
समझ से परे माया- जाल है।
अमीरी में हों वीआईपी दर्शन,
गरीबी में बंदे के मंदे हाल है।
मानूं में भक्ति में बहुत शक्ति,
कुदरत के रूप विकराल हैं।
मनसीरत मन बांवरा वैरागी,
बन न पाया खुद की ढाल है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)