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7 Jul 2021 · 1 min read

कथात्मक कविता

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

रही दो बिल्लियाँ भूखी,पाई एक सूखी रोटी।
पेट भूख कुछ ऐसी, हुई छीना छपौटी।

धैर्य न किसी को भाया, बन्दर एक दिखाया।
झगड़ा क्यों करना, ऐसा पाठ पढ़ाया।

हम बाँट देते इसे, गर तुम होओ राजी।
समझ ना सकीं दोनों, बानर जालसाजी।

बोलीं ठीक रहेगा ही, तुम यह रोटी बाँटों।
आधा आधा ठीक बीच, कैसे भी तुम काटो।

बंदर था चालाक, काटा न रोटी बीच से।
जिसमें जियादा पाया, खाया झट घीच के।

कर कर ऐसा कृत्य, रोटी हो गयी खतम।
बिल्लियाँ देखती रही, हाय कैसा सितम।

रोटी खा बन्दर कूदा, चढ़ा वृक्ष पर जात।
कहा मेल न रहने की, यही तो है सौगात।

★★★★★★★★★★★
अशोक शर्मा ,कुशीनगर,उ प्र
★★★★★★★★★★★

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 1859 Views
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