कथनी और करनी
6
कथनी और करनी में अंतर न करके,
छोटे-छोटे संकल्पों से शुरुआत करनी चाहिए।
न हो बड़ी-बड़ी बातें आदर्शों की,
व्यावहारिक सी सहज अभिव्यक्ति होनी चाहिए।
घुटने लगी हैं साँसे बंद वातानुकूलित संकीर्ण कमरों में,
उन्मुक्त हवा में विस्तृत सोच होनी चाहिए ।
औपचारिकताओं से घिरे दिवसों का नहीं कोई औचित्य,
हर रोज़ ही संस्कारित दिवस मना लेना चाहिए ।
तारीफों की जंजीरों में कब तक जकड़े रहेंगे ख़ुद को ,
ज़रा आलोचना का भी लुत्फ़ उठाना आना चाहिए ।
पनप गए हैं समाज के ठेकेदार खरपतवार से,
पड़ोस की बेटी का विश्वासपात्र भी बन जाना चाहिए ।
माना कि महारथ हासिल हो गई है हमें,
नवांकुरों को भी पनपने का अवसर देना चाहिए।
न हो केवल किताबी लेखन और पठन
लिखकर,लिखे हुए की पुनरावृत्ति कर मनन भी कर लेना चाहिए।
कथनी और करनी में अंतर न करके,
छोटे-छोटे संकल्पों से ही शुरुआत करनी चाहिए।
डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’