कथनी और करनी
मई माह की झुलसाती गर्मी में पारा पैंतालीस डिग्री को छूने लगा था । भरी दोपहर में सुर्य देव का क्रोध बरस रहा था । कंठ प्यास से सुखने लगा था । कुछ ठंडा पीने की इच्छा हुई तो होटल देख कदम अपने आप ही उधर बढ़ गए ।
कुल ड्रींक ले अंदर जाकर बैठा तो कुछ राहत महसूस हुई । पर कुछ सोच होंठों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान थिरक उठी ।
कल ही तो कालेज के एनुअल फंक्शन में उसने स्पीच दी थी और अपना पक्ष रखा था की विदेशी कंपनियों के ये बोतल बंद ये पेय काफी नुकसानदायक होते हैं । विदेशों में तो बहुत सी जगह में टायलेट क्लिनींग के काम आते हैं कई देशों में तो इन्हें बैन कर दिया गया है ।
हमारे देश से ये विदेशी कंपनियां हर साल करोड़ों रुपए ले जाती है और हमारी सेहत से भी खिलवाड़ करती है अतः हमें इनका बहिष्कार करना चाहिए । आइये दोस्तों हम प्रण करें की चाहे जो भी हो हमें इनका बहिष्कार करना है।
बहुत से लोगों ने तालियों के साथ समर्थन किया। और मेरे साथ बहुत से लोगों ने वादा किया की अब से इनका सेवन नहीं करेंगे ।
और आज खुद ही….. इक पल तो ख्याल आया की ड्रींक ऐसे ही छोड़ दूं , पर छोड़ न सका । हां ड्रींक पीकर बोतल जरूर छोड़ दी । चोर नज़रों से निगाह दौड़ाई और झटपट उठ कर बाहर आ गया ।
बचपन में एक मुहावरा सुना था “कथनी और करनी में बड़ा फर्क होता है” उसका सही मतलब आज समझ आ गया था ।
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© गौतम जैन ®