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5 Dec 2017 · 1 min read

“कता”

“कता”
सुन रे गुलाब मैं तुझसे मुहब्बत पेनाह करता हूँ।
पर ये न समझना कि निरे काँटों में निर्वाह करता हूँ।
आकर देख तो जा तनिक मेरे हाथ भर बगीचे को-
बिछी है मखमली घास खिले फूल हैं चाह करता हूँ॥
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी

Language: Hindi
1 Like · 275 Views
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