कतअ हेरा गेलै मनुक्खक जिनगी
हे रूप्पैया रूप्पैया खाली रूप्पैया?
सबके रूप्पैया लै बिरड़ो उठल छै?
रूप्पैया आगू कोई केकरो ने चिन्ह रहल छै?
कतअ हेरा गेलै मनुक्खक जिनगी?
हौ आफत विपैत मे कोई केकरो देखनाहर नै?
सब अपना सुआर्थे आन्हर भेल जा रहल?
केकरा समय? कोई केकरो बोल भरोस नै दै छै?
मनुक्खक जिनगी बिला रहल छै?
कहां रहलै लोकाचार आत्म सरोकार?
सब अपना स्टेटस बढ़बै मे लागल रहै छै?
लाज धाख मान राखब सबटा बिसरेलै?
केकरो सुधि नै जे मनुक्खक जिनगी हेरा गेलै?
फलैट मे बन्न भऽ गेल अछि मनुक्ख?
रूप्पैया पावर दुआरे लोक ओझरा गेल?
सब एक दोसर के गरदैन कटबा पर उतारू?
कतअ हरा गेलै मनुक्खक जिनगी?
निसाफ बजनिहार कोई ने बंचलै
बात बात पर लोक खून खूनामे पर उतारू?
कोई ककरो हंटनाहर डंटनाहर नै बचलै?
मुपुर्खीक दखली मे केकरो नै मोजर दै छै?
मूइलाक बाद सबटा धन बित रखले रैह जेतै?
मनुक्खक करम छोड़ि किछ संगे ने जेतै?
तइयो रूप्पैया दुआरे लोक चोरी छिनरपन डकैती?
आ शोषण कअ लचार लोकक खून पीबै छै?
रूप्पैया स रिशता नाता जोखाई लगलै?
आब के केकरा बिपैत मे काज औतै?
लोक समाज अपनैती सबटा उधिया गेलै?
कारीगर कतेक कनतै? कतौ हेरा गेलै मनुक्खक जिनगी?
कवि- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)