कठपुतली का खेल
दुनिया में सुनो भाई इतनी है कहानी,
बचपन जवानी जरा, यही जिंदगानी।
यार दोस्त भाई बहन कुल परिवारा।
नाटक का खेल यहाँ जग में है न्यारा।
जीवन के मैदान में खेल यही चलता।
जाता श्मशान, कोई पलने में पलता । कठपुतली का खेल महज एक वो मदारी ।
उंगली से खींच रहा डोर है करारी ।
जैसे वो चराता वैसे विचर रहें हैं ।
महज एक भ्रम कि हम कर रहे हैं । हर दिन पहेली झूमती है जैसे,
युगों से कहानी यूँ ही घूमती है ऐसे ।
कवि चले जायेगें गवैया चले जायेगें, लेखक विचारक बजैया चले जाएँगे । जीवन की भाग दौड़ जरा तो विचार करो ।
जाना है जरूर जरा खुद से पुकार करो ।
बीती हुई साँसें कभी लौट के न आएंगी।
हम नहीं होगें बस कथाएं रह जायँगी।
अभी भी सबेरा चलो हरि से पुकार करें,
कर लें कमाई अपने पन की सवांर करें ।
-सतीश सृजन