कट ले भव जल पाप
उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप।
जन्म-जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।।
कितनी योनि झेली तूने,खाने ओर सोने मे,
समझ न आई उस दाता की,पाप कर्म बोने मे,
मानव चोला दर मुक्ति का,तुझे देकर किया सनाथ।।
उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप।
जन्म-जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।।
संगत करते सतगुरु बाबा,समझ पड़ेगी भाषा,
पथ दिखाया जो सतगुरु ने,करले अमल तू दासा,
कष्ट-विघन् मार्ग मे जो,सब कटे सहज मिल आप।
उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप।
जन्म -जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।।
भज सिमरन पाये तू उनको,जीवन सफल हो तेरा,
जन्म-मरण की फांसी कट जा,लग सतगुरु संग डेरा,
आप तरे कुल को भी तारे,मुक्त होये चिर शाप।
उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप ।
जन्म-जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।।
संतोषी बन तु कट ले,अपने लख चौरासी ताप।
उठ मन कट ले,तू भव-जल पाप।
जन्म-जन्म से सोता आया,जाग सके अब जाग ।