कटी गर्दन तलवार के तेज धार से अनुराग के हत्यारे को फांसी दो फांसी दो।
सपने थे आंखो में कई।
उमंग थी जीवन में इक नई।
ताईक्वांडो का था खिलाड़ी वो सही।
जीते थे मेडल उसने कई।
पुश्तैनी जमीनी विवाद में।
अधूरे संवाद ने।
ले ली जान एक मासूम की।
वो हाथ न कैसे कांपा।
कैसे ये पाप जगा।
नंगी तलवार से गर्दन उसकी कटी।
फुटबॉल की भांति गिरी।
छटपटाता रहा तन जब तक न मरी।
श्रद्धा सुमन है अर्पित उस लाल अनुराग को।
सरकार कहां पर सोई अपराधियो को फांसी दो।
फांसी दो फांसी दो दोषी को दोषी को।
रूपए और सत्ता के सय में अपराध जब बढ़ता है।
बिकी हुई पुलिस प्रशासन को हाथ में लेकर चलता है।
ऐसे लोगो से ही संविधान खतरे में पड़ता है।
कोई दिन दहाड़े किसी की हत्या करता है।
होकर निर्भय वो तो सत्ता के बल पर टहलता है।
उसे न जब तक दंड मिले ।
आत्मा को शांति का सुख न मिले।
प्रशासन अगर साथ न दे।
तो खुद ही न्याय करना पड़ता है।
इससे फिर समाज और अपराध बढ़ता है।
दोषी है पुलिस प्रशासन वो न्यायालय का चौखट।
जिसकी छत्रछाया में अपराध खोल रहा घूंघट।
ठंडे बस्ते में रह जाती गरीबों की लिखी रपट।
RJ Anand Prajapati