कटघरे मे जीवन है
कटघरे मे जीवन
“मन हि मन है अब नाराज यहां
ना मन का कुछ कर पाता हू
जीवन जीने कि लालसा लेकर
खुद से हि पराया हो जाता हू,
रोज सुबह उम्मीदो मे जीता
सपनो कि तलाश मे हु फिरता
जाने क्यु खोया सा ये मन है
लगता है कटघरे मे जीवन है,
रह जाते है खुद के सपने अधूरे
अपनो को हि ऊपर उठाने मे
जैसे लगता है बिका ये तन है
कैसे कहे कटघरे मे जीवन है,
अश्को से बचा लेता हजारो को
काश!दो पल जिन्दगी और होती
बिक गये है आसमां और तारे
नही आज कहीं अपनापन है
कैसे कहे कटघरे मे जीवन है,
दर्द ही दर्द बिकता यहा है
हर पल बस खामोशियां है
तन्हापन है जीवन मे अब तो
और मंजिल अपना सुनापन है
कैसे कहु कटघरे मे जीवन है”