कच्ची दीवारें
कच्ची दीवारें है घर की कच्चे रिश्ते सारे हैं।
वहम से घर की दीवारें,और हिली मीनारें है।।
पहले होते थे मतभेद,अब मनभेद हुआ करते,
कच्ची हुयी दीवारें जब से, उनमें पड़ी दरारें हैं।
एक ही कमरे में सब,हिल मिल रहा करते थे,
पहले बंटे थे कमरे,अब खिंच गयी दीवारें हैं।
इन पक्की दीवारों में किसने सेंध लगाई यारों,
मनभेदों को दूर करो,फिर हरकत में सरकारें है।
कहने को तो जिंदा है,पर मरी हुई है आत्माएं,
घर में अपने सेंध लगाते,हुयी खोखली दीवारें हैं।
अपने ही अनमोल रतन,तन मन से वो सच्चे हैं,
जग से जीत गए हैं यारों,किन्तु अपनों से हारे हैं।
अपनों को खोकर जाना,क्या खोया क्या पाया?
दो लफ्जों की दूरी में ही,खिंची हुई तलवारें हैं !
पक्की दीवारों ने भी ,अपना कुल वैभव देखा है,
सिसक रही यह दीवारें अब,किसके रहे सहारे हैं।
बड़े जतन से घर की मीनारों को मैंने खड़ा किया,
जर्जर काया,खोया वैभव,टूट गयी पतवारें हैं।