कचोट
कचोट
अधूरापन भीतर तक कचोट रहा हैं
सिर्फ़ मैं ही मैं हूँ, तुम ना जाने कब छूट गए ,
एक ऐसा ज़ख़्म दे गए जिसकी कोई थाह ही नहीं हैं,
तुम होकर भी मुझे महसूस नहीं होते
जाने दिल मेरा भी,पर कोई टोह ना लेते ।
तुझ संग ही प्यार की सब रंजिशे
तुझ संग ही सब बंदिशें,
जाने क्यूँ मन मेरा सिर्फ़ तुझको ही ढूँढे।
तुझ संग प्रीत आसान ना थी,
साथ थी पर मैं परेशान ना थी,
अब तो दूर तलक सन्नाटा है
मन परेशान है,एकदम उदास है।
खोखले होते वजूद,रिक्तता भरती जाती रिश्तों में,
मेरे वश में कुछ नहीं,सिर्फ़ एक शून्यता
एक ही दिशा में ठहरी निगाह ,
मैं जड़, महापाषाण सिर्फ़ इंतज़ार मैं।
डॉ अर्चना मिश्रा