कचरे मे जीवन तलाश रहा था
कॉधे पर उसके एक थैला था
ऑखें उसकी स्याह / मुख मलिन और मैला था
नंगे पॉव चुपचाप चलरहा था
कचरे के ढेर पे न जाने क्या कर रहा था
छडी़ की नोक से कुछ कुछ उठा रहा था
जाने क्या ढूढ़ कर थैले मे भर रहा था
बच्चे को देख मन अधीर हो रहा था
क्यू अपना जीवन कचरे को दे रहा था
उपजी दया ह्रदय मे करूणा हुई मनन मे
धर हाथ उसके कॉधें कुछ प्रश्न कर चला था
हतप्रभ हुआ उसी पल जब मन टटोल चुका था
नाजुक से कंधो पर, घर बोझ चढ़ चुका था
नशे की लत मे बाप चढ़ चुका था
बच्चा तो बस दूध का कर्ज उतार रहा था
कचरे मे वो तो जीवन तलाश रहा था
कचरे मे वो तो जीवन तलाश रहा था