( कघुकथा ) जिंदगी का सफर
आज सुबह से ही महेश बाबू किसी उधेड़बुन मे डूबे हुये थे…
एक डायरी पेन लेकर बरामदे मे रखी कुर्सी पर जा बैठे..
उम्र उनकी पचपन छप्पन के लगभग हो चली थी।परिवार के अन्य सदस्य कही बाहर गये हुये थे सो अकेलेपन मे महेश बाबू को कुछ लेखा जोखा करने का खयाल आ गया था।
डायरी जिसमे कि वे तमाम तरह के खर्चों का हिसाब किताब रखते थे, उसी मे कुछ सोच सोचकर वो लिखे जा रहे थे…
हो चुके खर्चों के अलावा भविष्य मे बच्चो की शादी, मकान बनवाने ऒर बुढा़पे के लिये बैंक बॆलेंस का होना आदि तरह तरह केआर्थिक नियोजन की चिंताओं के साथ उन्हे कुछ तनाव सा महसूस होने लगा तो सोचा चलो सामने वाली गली मे जाकर एक चाय पी जाये..
घर से निकले ही थे कि गली मे सामने से एक शवयात्रा चली आ रही थी, सो एक किनारे को खडे हो गये…
अंतिम यात्रा मे पीछे की ओर एक परिचित चेहरा नजर आने पर पूछ बैठे…
पता चला कि कोई तीस बत्तीस वर्ष का युवक था जो रात्रि मे अचानक ही हार्टफेल होने से चल बसा, अगले माह उसका विवाह होने वाला था…..
सुनकर महेश बाबू वापस घर को लॊट आये,डायरी पेन उठाकर रख दिये ऒर मुस्कुराते हुये उनके होठों से एक फिल्मी गीत सीटी के रूप मे निकलने लगा….
गीत कुछ यूं था ” जिंदगी एक सफर हॆ सुहाना,यहाँ कल क्या हो किसने जाना……..
गीतेश दुबे ✍?
।