कई दिनों से सोच रही हूँ कुछ लिखूँ। दुनियाँ या ये जीवन पर ही कुछ लिखूँ।
गीतिका …
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कई दिनों से सोच रही हूँ कुछ लिखूँ।
दुनियाँ या ये जीवन पर ही कुछ लिखूँ।
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हसीन वादियों , पहाड़ों , नदियों या
पहाड़ों से गिरते झरनों की कुछ लिखूँ।
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प्रकृति की सुंदरता , रौद्र रूप , करुणा
उससे मिलती प्रेरणा पर ही कुछ लिखूँ।
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विहंग का नभ में स्वच्छंद विचरण या
उसके मधुर संगीत पर ही कुछ लिखूँ।
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वनों की अपनी कहानी है,उसमें भी कई
जिंदगानी है,क्या उसकी ही कुछ लिखूँ ?
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प्रेम में गाता मानव मन या झंझावातों से
जूझता उसका अंतर्मन पर ही कुछ लिखूँ।
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दर्द से तो हर मानव का नाता है “पूनम”
चाहिए खुशी,क्यों न खुशी पर ही कुछ लिखूँ।
@पूनम झा। कोटा,राजस्थान।
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