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10 Dec 2021 · 6 min read

कंपीटीशन की तैयारी

( ये लेखिका के व्यक्तिगत विचार हैं,इसका किसी भी जीवित एवम मृत व्यक्ति से पूरा – पूरा संबंध है?)

तैयारियां कई किस्म की होती है, कई किस्म से होती हैं,तैयारी शब्द अपने आप में ही इतना प्रेरणादायक होता है की कभी- कभी तो मानव केवल इस शब्द को मुख से उछालकर ही अपनी आत्मा को तृप्त कर लेता है फिर कोई मूर्ख ही होगा जो तृप्ति के लिए कर्म का आसरा ले। जब लफ्फाजी और जुमले ही परमपद की प्राप्ति करा रहे हों तो पुण्य करके धाम पाने की कामना ,ये सोच ही अटपटी लगती है।

इस तैयारी रूपी क्रिया में क्रिया विशेषण लगाता कंपीटीशन नामक नया रूपक आजकल खूब चलन में है।”काहे की तैयारी कर रहे हैं साहब ? ” जवाब आएगा “कंपीटीशन की।” जिसे देखो वही कंपीटीशन की तैयारी में लगा हुआ है । मानो कंपीटीशन की तैयारी न हुई ,समुद्र मंथन से फूटा अमृत हो गया जिसने पी लिया वो अमर। जैसे इंद्रदेव ने आकाशवाणी की हो की जिन- जिन नास्तिको ने अपनी जिंदगी में कभी कंपीटीशन की तैयारी ना की हो ,उनकी स्वर्गलोक की टिकट का रजिस्ट्रेशन कैंसिल करा दिया जाएगा और पैसे वापिस भी न मिलेंगे।

अभी कल की ही बात है,
हमारे पड़ोस में रहने वाली आंटी जी अपने बच्चो को मेरे घर कोचिंग पढ़ाने के लिए छोड़ कर जाया करती हैं। कल मुझे पढ़ता हुआ देख उन्होंने सवाल किया – “पढ़ाई कर रही हो ,कौन सी क्लास में हो ?”
(जब किसी मनुष्य का स्कूल और कॉलेज से नाता टूटे एक अरसा बीत चुका होता है तो कौन सी क्लास में हो वाक्य सुनकर दो प्रतिक्रियाएं होती है । या तो यह की अगर व्यक्ति के पास नौकरी है तो वो गर्व से कहता है की पढ़ाई कर रहा है।
और यदि नौकरी या कोई और काम नहीं है और तब भी पढ़ाई कर रहा है ( माने बिना डिग्री वाली)तो वो उस चिर परिचित जुमले को बोलता है जो किसी के लिए खीज का विषय है तो किसी के लिए टीस का। और किसी किसी के लिए खोखली लफ्फाजी। यानी की कंपीटीशन की तैयारी।

मेरे लिए ये उपरोक्त में से कोई नहीं थी । मैंने आंटी को साधारण लहजे में जवाब देकर बात ख़तम करनी चाही – “आंटी जी में कोई सी क्लास में नही हूं।मेरा ग्रेजुएशन पिछले साल हो चुका है ।”
आंटी जी अपनी उत्सुकता को प्रकट करते हुए फिर पूछ बैठी – “तो फिर क्या पढ़ाई कर रही हो।”
( कभी कभी ज्ञानपिपासु और जानपिपासु एक दूसरे के पर्यायवाची हो जाते हैं, आंटी जी दूसरी वाली होती जा रही थी ..)
मैनें सोचा डिटेल में बताऊंगी तो आंटी भावुक हो जायेंगी सो जो कॉमन उत्तर हो सकता था वही कहा- “आन्टी जी कंपीटिशन की।”
“कंपीटीशन की।”
आंटी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई वे तुरंत बोली – “अरे कंपीटिशन की तैयारी तो में भी करती हूं।”
मैं उनका यह आत्मविश्वास झेलने की कोशिश कर रही थी।
भई ,आंटी दिन भर गृहस्थी के काम संभालती है , बाल- बच्चे संभालती है, फिर वक्त बचता है तो अपना पार्लर भी संभालती है।
रहती भी टीम- टाम से हैं।नए नए फ़ैशन का भी खूब पता है उन्हे ।
इन खूबसूरत दुश्वारियों के बीच किस तरह से वो कंपीटिशन की तैयारी करती है यह अपने आप में शोध का विषय है।
शोध का विषय एक दूसरा भी है की कंपीटिशन की तैयारी में आखिर ऐसा क्या है ,मुई ,कोई भी मुंह उठा कर करने लग जाता है।

वैसे आंटी जी से मेरा कोई व्यक्तिगत रोष नहीं है पर स्कूल से लेकर कॉलेज तक, घरों से लेकर बार तक , नौकरीशुदा से लेकर शादीशुदा तक, सारे एक ही रेस में दौड़ रहे हैं – कंपीटीशन की रेस में। कुछ को रेस जीतनी है कुछ को दौड़नी है और कुछ को रेस में होने का दिखावा करना है ।मुझे आखिरी वाले से बड़ी शिकायत है।

हर कोई इस कंपटीशन की तैयारी में घिसना चाहता है, पिसना चाहता है, लहूलुहान होना चाहता है। ये ऐसी जंग बन गई है जिसमे आदमी भले न जीते लेकिन लड़ता रहे ,आखिरी दम तक लड़ता रहे, तो योद्धा तो जरूर कह लाएगा। और म र जाए तो शहीद।
इतिहास में छप जाएगा ।लोग गर्व से कहेंगे भाई कंपीटीशन की तैयारी करते हुए शहीद हुआ है।आदमी में बात तो थी।

कंपीटीशन की तैयारी वाक्य आजकल फैशन में हैं। कुछ गंभीर, सताई गई मानव किस्मों को छोड़ दिया जाए तो बाकियों के लिए यह वो खुशबूदार इत्र है जिसे ना नहाने वाले ,निर्लज्ज ,महा आलसी प्रवृत्ति मानुष छिड़क कर इठलाते हुए घूमते हैं। इस वाक्य की महिमा उपमा से परे है । जो आदमी को निहायती नकारा और किस्मत का मारा इन दोनो के बीच संतुलन बनाने में बड़ी मदद करती है। जो असल में तैयारी करते है वो करते हैं ,बाकियों के लिए ये जुमला उनके निक्कमेपन को ढकने का अहिंसक और मासूम अस्त्र है।
बेटा आजकल क्या कर रहे हो- “कंपीटिशन की तैयारी।”
“अच्छा , शाबाश! मेहनत करो! तुम्हारा नही निकलेगा तो और किसका निकलेगा एग्जाम।”
और फिर अंत में वही घिसी पिटी लाइन रगड़ दी जाती है – “हमे तो बस एक सीट चाहिए।भले २ पदों के लिए २०० आवेदन हो।कितनी अतार्किक व्याख्या है।”
खैर.. कुछ मक्कार अकारण ही इस मासूम शस्त्र का प्रयोग कर अपने पिताजी की जेबें झड़वा रहे हैं। देश की इकोनॉमी के दृष्टिकोण से ये भी बुरा नही हैं वैसे।

कंपीटीशन की तैयारी करने वाले भी कई किस्म के होते हैं।
पहली श्रेणी उन साधारण किंतु असाधारण मानवों की है जो सारी दुनियादारी, रिश्ते नाते, मोह- माया छोड़ कर दिन- रात सिर्फ कंपीटीशन की तैयारी ही करते हैं। ये विभूतियां किसी को कहने नही जाती ना किसी को बताने। दे आर एक्स्ट्रा आर्डिनरी। ये महज तैयारी करने के लिए तैयारी नही करते, उनकी कुछ आकांक्षाएं होती है। ये खोखली लफ्फाजियो से दूर रहते हैं ।
जुमले फेंक कर तृप्ति की अनुभूति कर अपने कर्तव्य का पाणिग्रहण कर देने वाली श्रेणी दूसरी होती है। ये श्रेणी उन महामानवों की होती है जो कंपीटीशन की तैयारी इसलिए करते हैं ताकि दुनिया को दबा कर रख सके ।
दुनिया भी बड़ी जालिम है किसी ने ठीक कहा है -“मिजाज में तल्खी भी जरूरी है साहब,दुनिया पी जाती अगर समंदर खरा न होता।”
तो दूसरी श्रेणी के मनुष्य इस उक्ति में विश्वास करते है ताकि दुनिया को डरा कर रख सकें ।
कि वो जो आज है वो उसे उनकी नियति न मान लिया जाए। वो कल को कुछ और भी हो सकते हैं ।
कंपीटीशन की तैयारी वाक्य निहायत ही शक्तिहीन हो ऐसा नहीं मानना चाहिए , ये बिलकुल खोखला भी नही है ।इस जुमले को बोलकर इंसान काफी हद तक मोटिवेट हो जाता है ।पर वह मोटिवेशन पानी के बुलबुले की भांति क्षणभंगुर होता है आज है कल नही,जैसे जीवन।

खैर कभी कभी की गई तैयारी भी कंपटीशन की तैयारी कहलाती है, और अधिकतर ये कभी कभी ही की जाती है।

तीसरी श्रेणी उन परम मानवों की होती है जिनके पास भगवान का दिया सब होता है। घर ,घरवाले,नौकरी सब ।तब भी वे तैयारी करते हैं । ये उस कमल के फूल की भांति होते हैं जो कीचड़ में रहते हुए भी उससे अछूता रहता है, इनकी जिंदगी में भी सारे ताम झाम हैं, नाते रिश्तेदारी ,नौकरी ,जिम्मेदारियां । तब भी वे कंपीटिशन की तैयारी करते है ,खुद को अपलिफ्ट करने के लिए । मेरी नजर में जे
बड़े लड़ैया हैं ,बड़े धुरंधर टाइप।

अंत में यही कहूंगी समाज को गर्व है ऐसे आंटियों -अंकलो पर, ऐसे नवयुवकों पर भी जो दुनियादारी के झटकों से लहूलुहान होकर भी कंपीटीशन की तैयारी के साथ वफादारी निभा रहें है।
वैसे भी ज्ञान झेलने और ज्ञान पेलने की कोई उम्र डिफाइन थोड़ी है । चलिए बताइए कहां लिखा है?
पर यदि मानस को ज्ञान ही प्राप्त करना है तो वह कंपटीशन की तैयारी नामक जुमले के प्रयोग के बगैर भी किया जा सकता है।कितनी चीजे है दुनिया में सीखने को , समझने को,मुई कंपीटिशन की तैयारी होगी तभी ज्ञान बरसेगा ऐसा कहां लिखा है?
फिर भी सबको कंपीटिशन की तैयारी ही करना है ।
समझ नही आता लोग कंपीटीशन की तैयारी कर रहे है या तैयारी का कंपीटीशन।?

लेखिका?️
©प्रिया मैथिल

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 4 Comments · 400 Views
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