औक़ात
हम तपा, जला, काया अपना,
तुझे हरकत की, ताक में देखें है।
ओ सरहदी गुंडे, हमने तुझको,
छिपते दर्रो की, फाँक में देखें हैं।।
अरे कायर तूँ हमे, क्या डरायेगा,
हम तुझे तेरे, औकात में देखे हैं।
तू सुतली न सुलगता, हमें दिखा,
हमने तो अंगारे, राख में देखे हैं।।
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बस शुक्र मना की, वहशीपना।
जनती भारत की, कोख नही।।
हमने सत्य अहिंसा, सीखा है।
छीनना अपना, रहा शौख नही।।
पर जब जब, आँख तरेरोगे।
तब तब आक्रोश, जता देंगे।।
हम हिन्द वतन के, हैं सपूत।
तुझे तेरी औकात, दिखा देंगे।।
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©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०७/०१/२०२० )