माटी करे पुकार 🙏🙏
किन औलादों छोड़ गए 🙏
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कनक पनीरी धानों की मंजरी
अरहर मसूर मक्के फूलों बाली
झोंके पवन हिलोडें में स्वरघाटी
कोस रहें किन औलाद हाथों
छोड़ गए पद घमण्डी वैभव
संपदा अंधी ना कर्म किया
अंशों में अंशों को नहीं दिया
टुकड़े बट सही किसी का
साथ शोभा श्रृंगार उपज से
जीवन पेट भरता कन मांटी
दुख दर्द सहारा बन सकून
पर हाथों की कठपुतली बन
नाच नचा अपार कष्टों से भरा
कलेजा कट कट गिर रहा मांटी
वंश हाथों की सपना देख रहा
स्पर्श करो निज जन्म मांटी को
अनुभव होगा पुरखों की श्रम
पसीना रक्त हृदय का धड़कन
महशूस करो दर्द बेज़ुवा रुहका
माँ माटी कितनी बार पुकारा
सविनय आमंत्रण कह रही है
बांट खण्डित कर सौंप दे मुझे
आया बैठा समझ नहीं पाया
ये इसने वो उसने बात कही है
बेबात की उलझन बेतुक मुद्दा
बड़ा छोटा यह मैं तू हो क्या ?
धमकी अहंकारी होहदा चमक
मैं तू भंवर चक्रवात झंझावातों में
गुमनाम छिपा ऊषा निशा बेदर्दी
सलमा बलमा हामी में हामी भरी
भाव विहीन बदले की चिनगारी
छोड़ मुंह तरकश तीर ज़हरीले
विदीर्ण बचपन यौवन जिन्दगानी
वाणी तानों मिला कुछ नहीं कभी
ताना-बाना छोड़ कबीरा चल बसे
पीड़ा पश्चताप भरे इस जगत में
बड़ी यतन झींनीं झींनीं बीनी सात
चदरिया तनी मैली न करी तन से
जैसी मिली तैसी छोड़ दी चदरिया
सपने आ रुह समझाती वंशज को
जिम्मेदारी से कितना दूर भागोगे
मेरी स्वर्ग समाधि पर सूखी फूल
कब तक बरसाओगे क्या तृप्त ?
हो जाऊंगा सुगंधहीन पुष्पों से
चंचल दम्भी मन स्थिर करों यहां
जग रीत प्रीत समझ शीतल हो
दुनियांदारी जबावदेही मत भूलो
ऋण जन्म का चुका छोड़ यहीं
एक दिन बेजान दुनियां आना
होगा सत्य जान विचार करो
संपदा वैभव नश्वर आनी जानी
समझ सोच करो अनजानी
धर्म कर्म सत्य अमर है ज्ञानी
प्रेरणामयी जीवनजीव जगमें
चार कंधो का लिए सहारा
जग छोड़ आना तो तय है
तन मन ना कर मैलीज़राभी
साफ छोड़ चल रुह नगरिया
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तारकेश्वर प्रसाद तरुण