और हो जाती
जफ़ाओं में वफा की ग़र तिजारत और हो जाती |
सनम तुझको यहाँ मुझसे मुहब्बत और हो जाती |
ज़रा सा मुस्कुराकर फिर पलक क्यों झुक गई आखिर ?
पलक झुकके अगर उठती कयामत और हो जाती |
अदाएँ खूब हैं तुझमें निगाहों में भरा जादू,
जो ढ़लती शाम में दिलबर शरारत और हो जाती |
पिलाकर जाम चाहत का मिटा दो तिश्नगी मेरी,
हो मुमकिन छाँव जुल्फों की तो राहत और हो जाती |
बिना तेरे सफ़र “अरविन्द” को अच्छा नहीं लगता,
तुझे भी साथ चलने की जो आदत और हो जाती |
✍अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०