और हो गए हम…अछूत
पैदा होने से अब तक…
न जाने कब से कब तक…
माँ के पेट की भीत को को लात मारने से
धरती को लातों के निचे रौदने तक
हवा पानी मिट्टी माँ सब को छूने तक
मैं रहा आदमी का आदमी
आधा नहीं … पूरा आदमी
कंकड़,ईंट, पाथ्थर सब को छुआ
कुछ भी नहीं हुआ…
हांथों में जिस दिन छेनी-हथौड़ी पकड़ी
और सहलाया एक पाथ्थर को
उकेरा उस में एक नक्स
तुम भगवान हो गए…
और हो गए हम…अछूत
बहुत पहले, सदियों सदियों पहले
…सिद्धार्थ