“और मैं बिखर गयी”
जाना था मुझको दूर कहीं
निस्तब्ध निशा ने रोक लिया
राह भटक कर चली गयी
एक झोंका आँधी का
आया और मैं बिखर गयी
सपनों के मनके टूटे
बिखर गये अनजान पथ पर
जब टूट गयी मैं ही
तब मनकों का क्या
पथ पर आते जाते पद
चूर -चूर कर दिये सभी को
आह भी निकली तो क्या
चीखों में वह खो गयी
एक झोंका आया
और मैं बिखर गयी।
©निधि…